Friday, April 23, 2010

मेरे सपनो में परवाज़ नही

जो पड़ोसी के बच्चे को खिलाए,जो अपनी संतान को जग से मिलाए,
गुज़रते जनाज़ो को देख रुके जुका सर,अब वो लोग नही वो बात नही,

सब कल की बातो से है, है सब गीत पुराने, थे पाँच रहे जो संग हमेशा,
टेबल की थाप पे, मेरे सुर में गाते थे, अब वो दोस्त नही वो साज़ नही,

अपनी जन्नतो के मारे है हम भी, बेकारी के बादशाह है हम खास नही,
मेरी माँ,बाबूजी मेरे, मेरा बचपन वो यार मेरे, पूंजी वॉ मेरे पास नही,

आरक्षण है, संरक्षण नही, जगह जो भी मिलती है जैसे हो दान मिला,
परमेश्वर है लक्ष्मी पे हाथ उठाते, रोकने वाली वो बच्चों की आवाज़ नही,

आज़ादी की बात छिड़ी तब, माता की जय बोल शहीद हर गली से उभरे,
इंक़लाब की है ज़रूरत आज हमे तो, अब जो बचे भगत वो जाँबाज़ नही,

बह दुनिया के सागर में अपने जहाज़ ने जो जीते थे अब वो ताज नही,
मेरी काग़ज़ की कश्ती डूबती जाती है, अब मेरे सपनो में परवाज़ नही

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