Friday, April 23, 2010

ख्वाबिदा हम

पिंजरो के संग उड़ते कौओ के, फलक सी है दुनिया ये,
तू भी एक क़ैद परिंदा है, यहाँ में भी एक परिंदा हू,

जब जिस्म जलाते रूहो को, झूठ से मन बहलाके बोलो,
तू भी एक जो ज़िंदा है , यहाँ में भी एक जो ज़िंदा हू,

बड़े घरो में अकेले रहनेवालों के, इस अंजान शहर का,
तू भी तो एक बाशिंदा है, यहाँ में भी एक बाशिंदा हू,

जिससे जले बच्चे और लूटे शर्म, ऐसी पहचान से अपनी ,
तू भी तो शर्मिंदा है, यहाँ में भी एक जो शर्मिंदा हू,

बेजान खन्डर के ढाँचे में बैठ, अब राजमहल की बातों में
तू भी तो ख्वाबिदा है, यहाँ में भी एक जो ख्वाबिदा हू

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