Friday, April 23, 2010

में तब से फूल तोड़ता हू

जब आँगन में छोटे पौधो पे,
गुलाब के एक दो फूल लगते थे,
जब कांटो की चुभन पे मम्मी,
गीला कपड़ा लगा फूँक से सहलाती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू

फिरउन फूलों को जामुन के संग,
लंच बॉक्स में स्कूल ले जाया करता था
पर वहाँ दोस्तो को मिलने से पहेले,
हर फूल मूर्ज़ा के मरता था,
जब नानी ताज़े फूलों को मंदिर में सजाती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू

फिर जब कुछ पौधे पेड़ बने,
तो धूप से बच के संग में उसके,
पेड़ो की छाँव में मूँगफली ख़ाता था,
जब मोगरे की महेक उसको प्यारी लगती थी,
में तब से फूल तोड़ता हू,

और एक दिन किसी बारात के गेंदे को देकर,
मैने तुमसे जीवन भर का साथ माँगा था,
तुम ना मिली पर सारे गुलाब तुम्हारे,
अब भी तुमपे लिखी कविताओ के बीच सोते है,
जब से बँध कविताओ में महेक सारी लगती है,
में तब से फूल तोड़ता हू

अब सब फूल मुरझा गये है,
एक ऋतु है, और संग कोई नही,
कल की ही बात है,
चल बसा वो एक दोस्त जो बुढ़ापे तक साथ रहा था,
में पोते को ले उसके घर गया तो,
पोते को देखा उसकी फोटो पे से फूल तोड़ते,
पास वो आके बोला दादाजी,
हम आपके लिए ऐसा ही फूल रखेंगे,
बनावटी है तो कभी मुरझाएगा नही,
वो अब से फूल तोड़ रहा है,
में तब से फूल तोड़ता हू,
सोचता हू,
अगर ज़िंदगी में सारे रिश्ते
बनावटी फूलों से सजाए होते,
तो ख़ूसबु ना होती पर कुछ कभी मूरजाता नही

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