Friday, April 23, 2010

खुद से चाहिए

साइकल पे तेज़ हवाओं में पाया था जो,
चेहरे पे वोही सुकून, मुझे अब रुक के चाहिए

हवा से भड़क उठा, बुझ के पड़ा था जो,
होसला मुझको उस सा, अब दुख से चाहिए,

तू है खुदा? था कहा दुनिया की मौत पे,
शिनाख्त तेरे वजूद की, अब रुख़ से चाहिए,

हर जुंग की वजह है, दानापानि किसी का,
मुजको उम्मीद अमन की, अब भूख से चाहिए,

सर कटा सकते थे आज़ादी की खोज में,
तेरी पनाह में वोही मुझे, अब झुक के चाहिए

अपनो की भीड़ मे , में में नही रहा,
अपनी ही पहचान मुझको, अब खुद से चाहिए,

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