Friday, April 23, 2010

व्यंग भरी कलाकारी

खुद को अंजान बना दे ऐसी, मुखौटो की तरकीब अनोखी होती है,
दुनियादारी के बाज़ार में बिक्री, बस इस खोटी चीज़ की होती है,
नये ज़माने के संग जीनेको हर बार नया मुखौटा चुन सकते हो,
जश्न में खुशाली के रंग तो मातम में झुर्रिओ से उसे बुन सकते हो,

राम-मुखौटा पहन के वादे झुटे, दशरथ जानकी को दे आ पाओगे,
फिर अंधियारी रातों में दुशाशनि-मुखौटे से लाज नोच खा पाओगे,
बहुत निर्धन लाचार सी लाशें, यहाँ जीवन के मुखौटो में फिरती है,
चाहो तो बलवान मुखौटा पहन उन कमज़ोरो को दबोच ला पाओगे

कोई जो पूछे "कौन हो तुम" , खुद का चेहरा ले जाना बैमानी होगी,
मुखौटो के भी कुछ ल़हेजे होते है, उसकी कभी ना नाफ़रमानी होगी,
सच की आए बात भी जब भी, एक बचकानी सूरत ले जाना तुम,
"में नही था उस कायर चेहरे के पीछे", कह कर के जान बचाना तुम

इस दुनियादारी का चलन आसान नही है, एक बक्सा साथ ले चलना है,
एक भी मुखौटा छूट ना जाए, ठून्स ठूंस हर धोके को चेहरे पे भरना है,
मुखौटो की दुनिया मे ज़िंदगी जीना दोस्त एक व्यंग भरी कलाकारी है,
"में ऐसी दुनिया का नही" कह रहे हो तो, तुम्हारी कला भी चमत्कारी है

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