Friday, April 23, 2010

छोटू का सिलसिला

राम-राम, अस्सलाम-वाले-कू, गुड मॉर्निंग सर,
में छोटु, बेचता हू सेठ की बनाई चाइ तैयार कर,
कोई "साला", कोई "ठिन्गु", कोई गाली दे हस्ता है,
में सबको सलाम करता हू, रूपीए ले खिसकता हू,
किसीने नही पूछा, क्या है तेरी स्कूल की पढ़ाई का?
ढाई रूपीए दे, चाइ पे लेते मज़ा चुनावी लड़ाई का,
कोई कभी प्यार से एक बार पूछे भी घर कहा है?
सुन फूटपाथ घुर्राते दूर रहे पास क्या कर रहा है?
कभी किसी को मेरी बात राज़ ना है आई यहा,
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,

फिर एक रोज़ सामने की होटेल में हुड़दंग मचा,
किसी आतंकवादी ने था ग्राहक का स्वांग रचा,
अफ़रा तफ़री मची हुई थी गोली की आवाज़ो में,
कितनी लाशें बिछी पड़ी थी वहाँ के दरवाजो में,
में तब वॉचमेन को चाइ पिलाने गया हुआ था,
दौड़ के जान बचाई थी, सच, जान का जुआ था,
कॅमरा किसी चॅनेल का हमको देख गया था तब,
कुछ लोगो का हाथ पकड़ दौड़ बहारे आए थे जब,
फिर सब आके घेर गये मुझे, बोला में "हीरो" था,
एक छोटी सी जान से जाने बचाई था में वीरो सा,
में डर से काँप रहा था, वो बोले अपनी बात सुना,
"कैसा लग रहा है?" "कौन घर में रहता साथ सुना"
तुम हो हमारी कवर स्टोरी, बता हुआ कब कहाँ
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,

लाशों को छोड़ दरवाज़ों में, मुझको सारे पूच रहे थे,
कुछ नेता, मीडीया सब, फिर नाम मेरा बुझ रहे थे,
"ये देखिए ये जाँबाज़ बच्चा", "थोड़ा पाउडर लगा दे"
मेने सच बता दिया, में ने कुछ नही किया कही पे,
में डरा हुआ था, में भाग रहा था सब के साथ वहाँ,
में छोटू हू, में बेचता हू सेठ की गर्म चाइ यहाँ,
फिर एक साहब आया बोला किसको उठा लाते हो,
बनाओ दूसरा बच्चा स्टोरी, इसकी तनख़्वा पाते हो,
फिर किसीको पैसे दे बुलवाया, पूछा तुमने क्या सहा,
उसने आँसू संग होसला दिखा सबकुछ ठीकठाक कहा,
में फिर डर के उस ज़हरीली ठंडी में, रोड पे सोने चला,
वो भीड़ गा रही थी अब भी उस छोटू का सिलसिला,
उस रात फूटपाथ -माँ ने आके सपनो में यही कहा
तू छोटू है, तू बेचता है अपने सेठ की गर्म चाइ यहाँ
तू वो खून वो मौत ना भूलना, और ऐसे मत डरना,
अगली बार छोटू नही बनना, छोटू की तू छबि बनना
अब सोजा कल सुबह बहुत भीड़जमा होगी यहाँ,
तू अपना काम करना, बेचना सेठ की गर्म चाइ वहाँ

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