जो समजाते है, हिम्मत ना हारो, देखो वो चिटी बार बार गिर फिर चढ़ती है,
वो कहा रोकते है कदम, जब पैरो तले कुचलने उनके, वो चिटी आगे बढ़ती है
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गरम चाइ की चुस्की पे टीवी देख, वो बोले क्या बदलेगी? पागल सरकार है ये,
दूसरी जगह पे फिल्म नयी आ रही है, बदलो चॅनेल इनकी लड़ाई तो हर बार है ये
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वो नोटो की गड्डी हरी हरी सी, घर के टेबल पे रख मुस्कुरा रहा था मेरी कमज़ोरी पर,
कल रात बन मोटा थानेदार खूब खुश हुआ था, मुन्ना नानी की मोरनी वाली चोरी पर,
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एक पल आती, एक पल जाती, हर बार नयी रेतों पे उछल्ने,
पानी के बुलबुलो सा साहिल पे, में जीवन की लहरो पे जीता हू
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कुर्ते से निकले धागो में,
सिगरेट की राख में,
कुर्सी की खाली "किचूड़" आवाज़ में,
कॉफी की कड़वी महेक से .
आज भी अख़बार को कोने कर
तुम यादों की मेज़ से रसोई घर में आ जाते हो
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