Not very usual - Something totally surreal from me today.
सुबह हुई, सूरज आज चाँद सा चमक के आसमान पे आया है,
सुबह कभी ऐसी ना थी, ना दिन है ये ना रात का अंधियारा है,
सारे घर जो खिड़की से देखता हू में , सब मेरेघर जैसे बेरंग है,
सब में जैसे खिड़की पे में ही खड़ा हू, मुझसा ही सबका रंग है,
और खाली दीवारों पे तस्वीरें है, मेरी मेरे साथ, पर में जानता हू,
के मैं कौन हू, मेरे पिता मेरा भाई कौन, में सबको पहचानता हू,
और मेरी मेज़ पे चाइ पी रहा है एक परिंदा पहचाना सा कोई,
उसी प्याले की दूसरी ओर, उसे चुस्की लगा के चुपचाप ताकता हू,
एक ख़याल है, शायद मेरे किसी दोस्त से उसकी शकल मिलती है,
और दिन की बढ़ती धूप के साथ, आयने सी ये बस्ती पिघलती है,
सब जो था एक पल, अब अब्र सा बरस के बह जाता है रास्तो में,
कोई हैरान नही बहने से, सबकी सक्शियत एक दूसरे में सिलती है,
गौर से देखने की मुझे कभी आदत ना थी, पर आज ये क्या हो रहा है,
देखता हू ये की जो में जानता हू में हू वो बेचेहरा बदन चेहरे बो रहा है,
अब शक है की बदन भी है या वो भी सिर्फ़ एक ख़याल से ढाला है,
ये कौन से जगह है, कहा हू में, क्या मिला है मुझे और क्या खो रहा है,
ये जगह कैसी है? कहा हू आज? कल जब में था, तब था भी या नही?
कोई फ़र्क नही है किसी में यहाँ, सब में हू, और मुझे में सबही है कही,
ये दुनिया को खुद में, पाके सब दूख प्यार इंसानियत की बाते बैमानी है
क्या ये जन्नत है खुदा? क्या तुम हो? जो भी हो जब भी हो वो ही सही
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