एक ग्यानि ने खोज निकाली थी दुनिया की गोलाई एक दिन,
हर मौसम चक्कर काटे है, फिर धरती ने सूरज के निश दिन,
लाख-करोड़ भी कीमत अपनी, शून्य-गोल से ही तो पाते है,
एक प्रतिबिंबित गोले के बिना तो सब रातें अंधियारी रातें है,
बचपन भी तो गोद में अपनी, खेलने लाया था गेंदे-पहिए गोल,
और जवानी भी लाई थी कुत्सित अनकही कितनी गोलाई तोल,
हाथो में अंगूठी थी गोल प्यार की, बच्चे के गले में लॉकेट गोल,
जा बुढ़ापा नापोगे तो गोल चस्मे के पीछे बहते कुछ आँसू गोल,
ज़िंदगी में कुछ उपलब्धिया अप्रत्यक्ष तो कुछ साफ पुरस्कृत है,
छाति पे चमकते मेडल हो या प्यार भरी ये आखेहो, सब वृत है,
ध्यान देअगर जीवन को देखोगे जब, उसकी गोलाई को समझोगे,
अंत भी तो शुरुआत है कोई, समयचक्र की परच्छाई को समझोगे
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