Tuesday, January 18, 2011

Trying different types of poetry

घर घर तुझको पूजे सब,
कहकर एसु-राम,
सब में छुप कर तू कहे,
में हूँ तेरा काम

पटरी पे चलती रेल से,
सब ने पाए भाग,
जहन के माथे पे जो लगे,
धो कर ना जाए दाग

आँगन की अटखेलियाँ,
खेल जो बीते साल,
छोड़ ये आँखें होती क्यों,
मेहन्दी के संग लाल

गीत बने संसार के सारे,
जोड़ के हर एक सुर,
बूँद ना रहे संग नदी जो,
वो बह ना पाए दूर

युद्ध की अपनी भाषा है,
बम-धमाके सुन,
शहीदो को सुनाती धरती,
लॉरी की कोई धुन

आम जो पकते धूंप में,
मीठे लगे जब खाए,
समज भी हार में छुप के,
कठिनाई से आए

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