चोरस पहियों पे धक्के खाती , जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
कभी संभले कभी लड़खड़ाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
मंदिर के और रुख़ कर चलती, फिर कोई मन अगन मचलती,
पूजा के फूल बालो में लगाकर, गानो की धुन पे मन्त्र उगलती,
रास्ता बदल के ढूँढने जाती, कोई बीकाउ कलकत्ता साड़ी,
अपनी होकर अपनो को सताती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
रूह से अंधी, कर्म से बहरी, चह-चह कर पीछे भागती हर पल,
किसकी खातिर भूल के पैसा, भोग, खुशी सब मांगती हर पल,
थक-थक के जब रुक जाती, तो अपने पैर पे मारे कुल्हाड़ी,
सपने जला के फिर बढ़ती जाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
चोरस पहियों पे धक्के खाती , जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
कभी संभले कभी लड़खड़ाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी
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