Wednesday, October 16, 2013

ग़ज़ल

गौर से देखे तो हर संत एक कलाकार होता है, और हर कलाकार एक संत. कितने तूफान, कितने उफान आते है जीवन में, पर हर वक़्त श्रद्धा बनके रखनी होती है .... ये वैसे ही किसी हिचकिचाते हुए साधु या आर्टिस्ट के लिए लिखी थी, सोचा था कभी improve कर पाऊँगा , पर time नही रहे तो यही सही .... ग़ज़ल

 

 

जीवन की राह फांदता, मरा मरा रहा सदा  

हज़ारो झूठ जान कर, खरा खरा रहा सदा,

 

खुदी को रख जो गर्द में, चला अकेले राह पे,

वो आईनो की भीड़ में, डरा डरा रहा सदा,

 

देवी जो उस को पूजती, चला वो उस को छोड़ के

वो मन में उसके पाप सा, ज़रा ज़रा रहा सदा

 

किसी ने थाम हाथ को, जो पास में बिठा दिया,

वो रिक्त सब क्षुधाओ से, भरा भरा रहा सदा,

 

जो साथ ले चला था वो, नज़ाने किसके ख्वाब थे,

वो नग्न पतझड़ो में भी, हरा हरा रहा सदा,

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