Wednesday, October 16, 2013

गिल्ली डंडे का खेल

गिल्ली हवा में ऐसे ही नही उड़ती,

 

पहले

नर्म ज़मीन कुरेद,

किसी पत्थर के छोटे टुकड़े को

आधा गाड़ना पडता है,

फिर

उसपे गिल्ली का एक छोर लगा,

अपनी पूरी ताक़त से,

गिल्ली के नाक पे डंडा मारो,

तब,

हवा में उड़ती है गिल्ली,

डंडा भी सही वक़्त पे चलना चाहिए,

गिल्ली हवा में ऐसे ही नही उड़ती,

 

आज कल मौसम बहुत खराब है ,

जीवन की ज़मीन

गीली दलदल सी हो चुकी है,

मौके के पत्थर भी धस्ते जा रहे है,

गिल्ली की वो नाक,

पता नही कौन सा दोस्त,

काट के घर ले गया है,

आसमान के बादलों को चीरना चाहता हू,

पर

गिल्ली हवा में ऐसे ही नही उड़ती

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