Saturday, January 2, 2010

Poem : जन्वरी में जून

बहता हुआ ये खून, उसका भी है मेरा भी,
नफ़रत का जुनून उसका भी है, मेरा भी,
दोनो ताने हुए है बंदूक एक दूसरे की ओर,
गुज़री यादों का संदूक, उसका भी है मेरा भी,
दोनो को सता रही है चीखे बड़ी बेबस,
जलता हुआ हुजूम, उसका भी है, मेरा भी
बहता हुआ ये खून, उसका भी है मेरा भी

दोनो है ताक में एक दूसरे की मौत के,
बैखौफ है, कसम पे ज़िंदगी को झौक के,
नस नस में आग है, जंग जीत लाएँगे,
खून की गर्मी में रंग लाल पोत लाएँगे,
जन्वरी में जून, उसका भी है मेरा भी,
नफ़रत का ये जुनून उसका भी है मेरा भी,

पिछले साल की बात है, मेरे गाँव में खून की होली थी,
पिछले साल की बात है, उसके गाँव में भूख बोली थी,
मेरा गाँव, पहाड़ो की शान था, और मेलो के मेल भी थे,
झेलम की पहचानमेंबसे कुछ रेतों के हंगामी महेल भी थे,
उसका उस पार था घर झेलम के पर ऐसा ही होगा वो भी,
बारूद की बू से बचा बचा सा बारिश में भीगा होगा वो भी,
वो बर्फ़ीली पहाड़ियों पे, आज चाँद आया है,ये
बेकार का सुकून, उसका भी है मेराभी

मेरा धर्म है मेरा मुल्क, उसके धर्म को मुल्क की तलाश,
दोनो ने सफ़र में बिछाई है, बेगुनाह बच्चों की कई लाश,
एकअल्लाह-इलाही हमारे, दोनो का है एक नाम सिपाही,
में जायज़ सियासतदारो का, उसकी पहचान है जिहादी,
ये पहचान का क़ानून उसका भी है मेरा भी,
बहता हुआ ये खून, उसका भी है मेरा भी

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