दाव थोड़े खेलो अब आके जुए-खाने में,
ज़िंदगी मज़ा क्या दे, सिर्फ़ आने जाने में?
बारिशें बुलाती है, नाव काग़ज़ो की ले,
कब तलक यूँ उलझोगे,चाँद तारें पाने में,
पाँव में ये छाले ले, अब मैं चल नहीं सकती,
सार मेरे जीवन का, उसके एक बहाने में,
खोल बंद मुट्ठी को, बाँट जो समेटा है,
है अजब खुशी प्यारे, बैठ मिलके खाने में,
यूँ जतन से पाला था, बेटे हो फसल जैसे,
खून अब लहकता है, उसका दाने दाने में,
गाँव से शहर तक है, चारो सम्त महंगाई,
है समज, हुकूमत के, नाम पे नहाने में
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