ये पहेली सी ज़िंदगी, हम से ना सुलझाई बने,
अब हमारी कुछ कर ज़माने से ना बन पाई बने,
नूर तुझ में था चाहतों से, गुरूर जोश-ए-इश्क़ का ,
आशिकों की आहें तेरे जिस्म में अंगड़ाई बने
खेत बोए कारखानों से, खीर उबली है खून की,
गुड मिला किसी गाँव का, हर शहर हलवाई बने,
है नये मुनशी अब शहर में, और कंप्यूटर है बही,
बह पसीना हर दौर में, किश्त की भरपाई बने,
झमझमा था आज़ाद राहों और प्रजा के तंत्र का,
शोर-ओ-गुल में, थी मिल गयी, चीख शहनाई बने
अपने जैसे लग तो रहे, है मगर ये अपने नहीं,
डर रवाँ अब है सब तरफ, साये ये परछाई बने
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