एक काँच पे ठहरे कोहरे से, हम नाम तुम्हारा लिखते थे,
धूप की पहली किरनो में तुम खुद को खोना क्या जानो,
तुम आओगी सोच मन ही मन सौ बातें तुमसे करते थे,
बेफ़िज़ूल इंतेज़ार में बैठ कलम पे फूल पिरोना क्या जानो,
एक चेहरा सा बन जाताथा, हररात तारों के जुड़ जाने से,
तुम बिना चाँद की रातों में, वो आँगन में सोना क्या जानो,
बेफिकर कॉलेज की छत पे, जब चाइ की चुस्की चलती थी,
कानो को छुते मेरे हाथों में,थी ज़ुल्फ खिलोना क्या जानो,
बारिश की बूंदे बालोसे निकल जब गालो पे रुक सी जाती थी
एक छाते में सुखी बाज़ू पे, खुद को तुमसे भिगोना क्या
जानोइतनी सारी मेरी यादो में, तुम ना होके भी होना क्या जानो,
मेरी बातें जान के सारी, अब तुम अपनी कहोना क्या जानो
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