एक आम दिन, खुश होने, त्योहार मनाने,
खुशियाँ बाटने, कुछ झूठी मुस्कान लुटाने,
शॉपिंग की इच्छा से,
निकले अपनी बजाज पे,
श्रीमती जी भी साथ थी,
उनको गहनो की आस थी,
गाँधी रोड जाएँगे,
पैसे भी उड़ाएंगे,
कॉलेज की लड़कियो सा बैठ बोली, "चलेंगे?
"मैं समज गया इस दसेरे पे दीवाली मनाएँगे,
ट्रॅफिक खूब था पतीओ की गाड़ी से,
रिझाना चाहे सब बीवी को सारी से,
इसी कशमकश में,
अपनी श्रीमती जी के वश में,
सोचते सोचते जा रहा था रोड पे,
भूल गया में एक सिग्नल था मोड़ पे,
ट्रॅफिक पोलीस ने सिटी मारी,
कहा साइड आओ बांके बिहारी,
बोले "रोड क्या तेरे बाप की है"
में डर गया, बोला "मेरी नही आप की है"
उसको समज में आया ये परदेसी है,
बीवी बोली इंग्लीश में जैसे विदेशी है,
वो घुर्राया, चिल्लाया, उसका नया सा अब ठाट था,
"तुम्ही पाहिजे तसा चलवता पाहिजे तसा थाम्बता"
हम समज नही पाए,
"ही काय पद्धति आहे?"
"सॉरी सर, नही दिखा सिग्नल,"
श्रीमती जी शांत थी में था जैसे क्रिमिनल,
"पावती फटेगी ५०० की", बोला हो के लाल पीला,
लो भाई फिर हो गया, कंगाली में आटा गीला,
में नादान भाव तोल का कच्चा हू,
वो बोला PUC दू तो ही अच्छा हू,
"PUC तो साथ नही लाए,
बोला फिर, "ही काय पद्धति आहे"
तभी बड़ी एक कार में, छोटा सा एक राजकुमार,
सिग्नल तोड़ता पकड़ा गया, गाड़ी करली एक पार,
बिना निकले, ५०० निकाले,
बोला, " खाओ, जाने दो साले"
"देखा, ऐसे जल्दी निकल जाते है,
इतना सारा नही बतियाते है,
५० दे और चलता बन इस से,
या गाड़ी ले जाना ओफिस से,"
में बोला "पावती दो,पैसे में ५०० दूँगा"
"ठीक है गाड़ी भी में कल ही दूँगा"
में क्या कर सकता था, दबा डरा सोच रहा था,
"तुम पैसो के पुजारी, सारी शर्म छोड़ चुके हो,"
यही सोच गुस्साया, कोई चोरी की हो लक्ष्मानरेखा,
मेंने इसके बाद, श्रीमती जी की और डर के देखा,
अब वो घुर्रा रही थी, उसका नया ठाट था,
बस ले घर जाना था, में ना साहबलाट था,
घर पहुच सोचा किया आज रावण दहन,
और श्रीमती जी थी अब भी एक गुस्सा पहन
,"सॉरी" बोला धीरे से, और मन में कुछ और बात थी,
"थॅंक यू" हवलदार सब, ५०० की पावती के साथ भी,
आपने मुजको जो पावती चिपकाई,
उसने १०००० की शॉपिंग ५०० में निपटाई
Sunday, October 4, 2009
"ही काय पद्धति आहे"
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