हररोज़ नये है करतब उसके, हररोज़ नयी कहानी है,
परिओ को है देखा उसने, राजा-रानी की बातें ज़ुबानी है
बस कल की थी ये बात जब उसको सुन शिवाजी के किस्से,
छोटी काग़ज़ की तलवारों से, मुगलो के जा करने थे हिस्से,
फिर एक रोज़ बन हनुमान उसे सीता माता को बचाना था,
और दूसरे ही दिन नटखट क्रिश्न बन, वृंदावन को जाना था,
एक दिन पूछ रहा था, "माँ, तुम झाँसी की रानी क्यों नहीहो ?"
"क्योकि तेरी मा हू" बोलू उससे पहले , खो गया सपनो में वो,
फिर कभी उड़ना चाहा, टीवी में एक सुपेरमेन को देख कर,
जान गयी,स्पाइडरमेन के जाले बनेंगे मच्छरदानी फैक कर,
कभी दिल को रख लेता मेरे, कह में अल्लादीन की जीनी हू,
कभी कहे फिर, अलिफ लैला से आयामें सींदबाद सेनानी हू,
उसके लिए इस दुनिया में, कहानी के सच से आगे कुछ भी नही,
उसको देख ये सीखा है, मानो तो सब है, ना मानो तो कुछ भी नही
फिर कभी अकेले में जब सोचती हू उसकीसारी बातों पे कहानी पे,
लगता है बड़े होते होते उसने, खुद की दुनिया को ही नही जानी है,
सूरज से दादा का रिस्ता और चंदा मामा की बातें कब सच्ची थी,
पर मुझको भी यही झूठ पिलाया गया था, जब में भी बच्ची थी,
मुजसे भी तो परिओ ने की थी बातें, कभी मैं भी तो सिंडरेला थी,
कभी तारों से, कभी बुढ़िया जैसे चाँद से, माँ कहानिया थी ले आती,
इन कहानीओ से आगे की दुनिया, नयी बातें ज़िंदगी दिखलाती है,
उन बातों में परीया नही, जिन नही, ये बातें कोई बेसुरे सा गाती है,
ना सींदबाद, ना बीरबल , ना सिंडरेला ईन नन्हे बच्चों को जीना सिखाएगी,
हम माँए क्या इस दुनिया में, कभी ज़िंदगी की कहानियाँ ही ना सुनाएगी?
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1 comment:
really, is kavita se to bachpan hi yaad aa gaya.
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