Saturday, November 10, 2012
तन्हा सी राहे,मीलो चलाए,
यहाँ पर तो सब ने की है बंध आँखें,
Thursday, November 8, 2012
कहानी एक लड़की की
सुबह जब आँख खोले पंखडी और रंग बिखराए
सदा हो आरती की मंदिरों में, धुंद सी छाए,
वो गौरैया कहीं तब पीपलों की छाँव में गाए,
कोई झरना पहाड़ों पे बना झालर तो बह जाए,
वो झालर जो हटाओ तो मिलेगी तुम को वो लड़की,
नहाकर कोयले से जिसने उजला रंग बनाया है,
वो लड़की जो परी होती अगर होती कहानी में,
खुदा ने पर किसी कुम्हार की बेटी बनाया है,
बहे शफ्फाक पानी पारदर्शी आवरण बन कर,
लगे सब मन बहकने बाँवरे वन के हिरन बन कर,
चहेरे पे चमक दैवी, वो काया का लचीलापन,
चले वो अप्सरा जैसे, अदाओं में सजीलापन,
सभी ये शोखियाँ उस को जवानी से मिली लेकिन,
धड़कता है अभी बचपन कहीं उसकी जवानी में,
करे आवाज़ पायल जब गली में दौड़ आती है,
कभी तुतला के बच्चों संग वो उनके गीत गाती है,
कभी बकरी चराने के बहाने खेलने भागे,
गुलेलो से फलों को फिर कभी वो तोड़ के भागे,
कभी वो हाथ में मट्टी, मेहँदी सी सजाती है,
घुमा पहिया नये फिर रूप के गमले बनाती है,
हज़ारो हसरतें सब की वो लेकर साथ चलती है,
मगर ख्वाहिश पुरानी एक उसके मन में पलती है,
कभी दादी ने राजा की कहानी एक सुनाई थी
कि जिसमें राज सारा प्यार में वो छोड़ देता है,
बनाता है महल रानी को दफना ने वो उसके बाद
बना फिर पास में अपनी कबर को जोड़ देता है,
उसे ये था भरोसा एक राजा है बना उसका,
जो उसको प्यार से रख कर महल उसके बनाएगा,
कभी तो चाँद देखेंगे वो महलों की अटारी से,
कभी रूठे तो फूलों और गहेनो से मनाएगा,
वो राधा बन रहे बैठी, हो कान्हा पास में जब भी,
बनी मीरा इसी ही सोच में, जोगन वो हो बैठी,
गुरूर भी नाज़ होता है जब होता है जवानी पे,
मगर उसकी जवानी गैर की यादों में खो बैठी
न था उसको मगर मालूम, ये भी बात होती है,
सुबह होती वहाँ पे है जहाँ पे रात होती है,
कही से घूमता प्यासा भटकता शाह एक आया
वो अपने लश्करो से हो जुदा, इस गाँव में आया,
वो उलझा जब कहाँ? क्यूँ? कौन? के पूछे सवालों से,
थी जैसे एक कहानी बन रही उसके खयालो से,
वो लड़की थी परी, देवी के मनभावन कोई सपना,
तभी थी ठान ली उस ने बनाएगा उसे अपना,
वो लड़की भी, इसी के वास्ते अब तक रुकी सी थी,
सगाई पे महल में आँख उसकी भी झुकी सी थी,
जो लड़की अब बनी रानी, बनेगी शांत, चंचल है,
जो दे सब को ख़ुशी समझो, कहानी वो मुकम्मल है,
अगर ऐसा जो होता तो, विधाता भी अधूरा है,
किसी में भी सभी को वो कभी भी खुश न रख पाया,
मुकम्मल ख्वाब की तक़दीर, कहानी थी वो लड़की की,
खुदी को रौंदती तदबीर कहानी थी वो लड़की की
जो दादी ने सुनाई थी कहानी थी वो राजा की,
हो जैसे बात रानी की वही जो थी वो राजा की,
भला ये कितने दिन रहना, लगेगा बंद महलों में,
बनी रानी बुढ़िया सी पड़ी उन बंद महलों में,
अकेला चाँद जब आता रहा सुनी अटारी पे,
बड़ा मातम सदा लाता रहा सुनी अटारी पे,
हवेली लाख बन जाए कहीं पे नाम पे उसकी,
बनेगी कब्र उसकी पर हमेशा नाम पे उसकी,
वो पायल थी बड़ी हल्की ये गहने बेड़ियों से है,
ना बकरी बाप की कोई, ये सपने भेड़ियों से है,
ये मेहन्दी हाथ की जैसे जलाती है बदन सारा,
कभी ख्वाहिश कोई झूठी जलाती है जनम सारा,
कहानी खूब राजा की भले दादी कहे हर दम,
नसीबों में वो लड़की को अकेलापन मिले हर दम,
सुना है आज राजा मर गया उस युद्ध भूमी पे,
नयी एक फौज बढ़ती है कहीं उस युद्ध भूमी से
ना रानी को गंवारा है महल में गैर आ जाए
लिए है हाथ में औज़ार उसने युद्ध भूमी के,
चला कर वो लिखेगी खूब रानी की कहानी वो,
सुनो बच्चों ना राजा की कोई अब से कहानी हो
Thursday, October 25, 2012
मटमैला चाँद - Nazm
आसमान की खातिर थे
चाँद सूरज आमादा,
भर सुबह को बाहों में,
अपने घर से निकला था,
रास्ते सब खाली थे,
रौशनी भी हलकी थी,
ओस-गीले पत्तो ने,
ख्वाब भर सितारों संग,
रात यूँ गुजारी थी,
जैसी मेरी यादों में,
तुम दुबक के आती हो,
चल के थक गया जब में,
बेंच के उस कोने पर,
हांफता सा बैठा था,
रास्ते पे तब जाने,
कोहरे की परतो से,
चाँद मैला निकला था,
नार एक बैठी थी,
मुझ से दूर कूड़े पे,
जाने कितनी बातें ले,
चेहरा मटमैला था,
चीथड़ों की साडी थी,
आबरू के खूंटे पे,
कितने किस्से साडी की,
गाँठ में छुपाये थे,
वक़्त के थपेड़ो से,
नैन बच के निकले थे,
कोपलो से होंठों पे,
गीत भूले बिसरे थे,
देख कर मुझे उसने,
आँख फिर झुका ली थी,
भौहे खिंची थी जैसे,
उर्वशी हो दिनकर की,
बेशरम सी नजरो से,
ताकता रहा उसको,
अंग की लचक में वो,
थी छबि अजंता की,
पर जवानी पे उसकी,
थी वो भारी मजबूरी,
चंद पैसो को कूड़ा,
चल रही थी चुनने वो,
ज्यूँ चला के अग्नि पे,
परखे कोई सीता को,
सोचता रहा फिर में,
क्यों वो इतनी सुन्दर थी,
कौन सी खुदाई वो,
उसके मन के अन्दर थी,
गौर से जो देखा तो,
जान पाया बातें में,
साथ उसके आँचल में
और भी थी आवाजें,
ये समज में आया है,
चाहे कोई आफत हो,
आबले हो आहों के,
या सफ़र के छालें हो,
रब्बरो सी रोटी या,
कंकरों की दाले हो,
धूंप कोई झुलसाती,
या सियाही रातो की,
चीथड़ों की छन्नी से,
छान के जब आती है,
लोरियों सी लगती है,
सुनके आज वो बच्चा,
गोद में माँ की देखो,
आँख मूंद सोया है,
जैसे कोई मंदिर में
मूरति हो कान्हा की,
खूबसुरती उसकी,
खूब उसके अन्दर है,
अपनी हो या गैरों की,
माँ हमेशा सुन्दर है
(Structure notes : Tried keepting it 212 (1 or 2) 222 like the nazm on bhookh by Javed Akhtar. Might have missed at places as did not bother about it while writing)
Sunday, October 21, 2012
સ્વપ્ન વનવાસ માં
સૂર્ય જો શ્વાસ દે આખરી શ્વાસ માં,
Friday, October 5, 2012
कहानी में सभी को कुछ गुनाह माफ़ होते है
बगावत में रिवायत को, कभी तुम मोड़ के चल दो,
यहाँ जो नींद में खोया, उसे झंझोड़ के चल दो,
कहीं पे बुन रहे है लोग सपने, तो कहीं यादें
सभी ये छोड़ पाओ तो, सभी ये छोड़ के चल दो
कहानी में सभी को कुछ गुनाह माफ़ होते है,
हमारी भी कहानी है, यही तुम सोच के चल दो
बड़ी थी महफिलें वो, तुम जहाँ से उठ के आये हो,
अकेला चाँद ये गजलें सुने तो बोल के चल दो,
नहीं आसान सीधा रासता तुम तक पहुँचने का,
कहीं मंदिर किसी पूजा से रस्ता मोड़ के चल दो
सभी अपने लगेंगे तुमको राजा भी भिखारी भी,
अगर ये मन के दरवाजे सभी तुम खोल के चल दो
बगावत में रिवायत को, कभी तुम मोड़ के चल दो,
यहाँ जो नींद में खोया, उसे झंझोड़ के चल दो
Saturday, September 22, 2012
નઠારો
ઘરે સાગરે સાંભરે છે નઠારો,
ધરે પાતરે જે ચરે છે નઠારો
વખત બે વખત નો ન કાઢો તકાજો,
સમય હાથ માં થી સરે છે નઠારો
સપન ના બની વાદળો વિસ્તરે છે,
અને તારલાં થઇ ઝરે છે નઠારો,
ફરી તાક ભાળી, અગન ઝારવાનો,
ભલે શ્રાવણી માં ઠરે છે નઠારો,
ગલી ના બધાં બાળકો ને ડરાવી,
જો મમ્મી સમક્ષ થરથરે છે નઠારો,
જુદા થઇ તમો થી રુદન હું કરું પણ,
ખુદા લાગણી થી પરે છે નઠારો,
જતો રે કહું છું ઘણી વાર એને,
છતાં કોક ક્ષણ પાંગરે છે નઠારો,
સજા ના ઘટાડો, કસમ ન્યાય ના છે,
રજા ને ભલે કરગરે છે નઠારો,
વળી એ જુએ શ્વાન ભસતાં તો ભાગે,
હવે શ્વાન થી ગજ ડરે છે નઠારો,
બધી કોર હવાથી ફગે ને ઉડે પણ,
ખોટી ગાંઠ લઇ કાંગરે છે નઠારો,
દરિયે પડે તો ના પાછો ફરે એ,
અધીરો છતાં બંદરે છે નઠારો,
અધૂરાં સપન લઇ કપટ થી મારે તો,
નરાધમ બની અવતરે છે નઠારો,
હવે શાહ ને ચુપ કરવો જ પડશે,
જીવન માં બહુ ગાંગરે છે નઠારો
Friday, September 14, 2012
Barfi - Movie Review
Director: Anurag Basu
Starring: Ranbir Kapoor, Priyanka Chopra, Ileana D’cruz, Rupa Ganguly, Saurabh Shukla, Ashish Vidyarthi, Aakash Khurana
Music: Pritam
Lyrics: Swanand Kirkire
Genre: Drama, Suspense
Recommended Audience: General
Film Released on: 14 September 2012
Friday, August 24, 2012
पुराने जूते
एक बात थी कड़वी,
जो किसी से कही थी कभी,
याद की चम्मच में काढ़ा बन,
आज सोच का स्वाद बिगाड़ने आई है,
वो एक पल है पुराना
जो उम्र में बड़े एक दोस्त सा,
आज मिला है वापस, तो याद आ रहा है ,
कैसे बचपन में उसने मेरी कोहनी मरोड़ी थी,
हँसी में एक खनक थी तुम्हारी,
आज मेरे रूठने पे जैसे मनाने आई है,
में उसको ताकता रहूं, तो बड़ी अंजान सी लगती है,
ना जाने किसके पास रहके आई है इतने दिन,
पुरानी याद अगर लंगर होती ,
तो डाल किनारो पे बैठा रहता,
तुम पानी पे परछाई सी हो, जो किसी के खेल में,
एक पत्थर से बिखर जा रही है, ये क्या ख्वाब है?
सच नये जुतो से मिले घाव सा है,
काश पुराने टूटे ना होते
Saturday, August 18, 2012
Ek Tha Tiger - Movie Review
Friday, August 17, 2012
जो है मज़ा मझधार का - A song
जो है मज़ा मझधार का, वो ना किनारो पर मिले,
जो मंज़िलें हो नाव की ना वो लहर बन कर मिले,
एक चोट पर हो घाव तो एक चोट पर मरहम मिले,
हम कल मिलेंगे जीत से जो आज सौ ठोकर मिले,
होगी कोई मजबूरियाँ, जो कह ना पाई तुम मुझे,
बेबाक सा वो इश्क़ भी तो कर ना पाई तुम मुझे,
कब तक कहूँगा प्यार के में झूठ अपनेआप से,
जब याद में चुभते हुए सब बेवफा खंजर मिले,
आँखें भरी हो दर्द से, हो भूख का लावा जवान,
जब रोशनी जाती रहे, दुश्मन लगे सारा जहाँ,
तब होसला बनकर कभी वो साथ में आ जाएगा ,
थे ढूँढते उसको बूत्तों में वो मगर अंदर मिले,
हो एक साया एस ज़मीन पर जो मेरा रहबर रहे,
चाहे वो हो बेज़ार सा या बादशाह अकबर मिले,
सागर रहे, गागर रहे, या बूँद भर हो ओस में,
अब जो मिले वो ठीक है, हो नूर या पत्थर मिले
Monday, August 13, 2012
Poem - अधूरी आस सा भारत
कहीं चलती कहीं रुकती, बताओ आग कैसी है,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है,
जलाके रूप ना बदले वो अंजन हो नहीं सकती,
जलाए जो नही सोना वो कंचन हो नहीं सकती,
अगन जब भी लगे तब वो कोई बदलाव लाती है,
ना लिपटे रूह से ज्वाला तो बंधन हो नहीं सकती
करे जो राम सा शासन, वो रावण नहीं मिलता,
बड़े भाषण तो मिलते है मगर राशन नहीं मिलता,
हमारे देश के नेता, सभी है भूख के मारे,
कभी चारा कभी दाना, कभी सावन नहीं मिलता
कभी था कृष्ण की भूमी, खुदा के नूर सा भारत,
हैधर्मो से, या जनपथ पे, लो जगड़ो में फसा भारत,
कभी सारे जवान बेटे कहे, पैंसठ की बुढ़िया है,
अकेले गाँव में रोता , अधूरी आस सा भारत,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है
Wednesday, August 8, 2012
Gangs Of Wasseypur -2 : Movie Review
The first part of Gangs of Wasseypur had left the audience wanting for more and the expectation with GOW 2 are therefore sky high. Does the film live up to the expectations? Even before we answer that let us make a point first : this movie reinvents the genre of revenge themes and redefines the use of violence and dark humour in narrative. It is surely one of the most well researched movie which tries to capture every possible detail of the characters it portrays.
The style of narrative is strongly influenced by world movies, film noir and pulp fiction. Unlike the sentimentality of movies that we like to fall for, the movie treads the thought process and theme of the story. Action is the prime mover. The blood and gore in the movie might remind you of Tarantino and it’s unique because there is no precedence to such violence in Hindi films. Yet it is strongly rooted with the impact of Bollywood on the common man. References to eras and times of Khan’s, Qureshi’s and Singh’s are done through Bollywood movies. Yashpal Sharma’s character with his songs like “Teri Meherbaniya” , “Yaad Teri Ayegi” and “My name is Lakhan” is an exceptional point in case. Dark humour apart from this song is everywhere as well – do check out some of the chase sequences in a crowded town as well as goof ups during the gang wars.
One of the strongest and omnipresent character for the part 2 of GOW has been the music. The movie for the first half deals extensively with percussions. The drums, the dhols, the daflis – all keeps you hooked to the movement of the story. The occasional flavour of folk songs and the experimental songs with lyrics like “Frustiyao na moora, Nervasao na Moora” being used absolutely intelligently adds to the flavour. Sneha Khanwilkar, you are the chosen one!
Sunday, August 5, 2012
Gazal by Jaykumar Shah
ઘણા છે મિત્રો પણ બધા નામના છે,
ન સમજાય ઍવી જગત ની કથા છે,
અગન જાનકી ની, ભજન રામ ના છે,
દુનિયા નકામી દુખો માં બળે છે,
સુખો તો બધા તોય પરધામ ના છે,
ન સ્વતંત્ર માણસ, ન આઝાદ ઈચ્છા,
જો યુધ્ધે ચડેલાં, ધરમ-કામના છે,
હૃદય લાગણી થી સભર રાખવાને,
આ મારા બધા તો દુખો ગામ ના છે,
મફત માં મળી જાય મૌલિક વિચારો,
નકલ ચોર અહ્યા વધુ દામ ના છે,
બધી ભૂખ ની ઍ પરાકાષટા છે,
ઘરે પેટ ખાલી, પિતા જામ ના છે,
હવે કોઈ સામે ન માથું નામવું,
બધા દેવતા હાડ ના ચામ ના છે,
ખુદા તો કહે ત્યાગ કર કામના ને,
સભા માં મજાની તોયે નામના છે,
બપોરે સળગતા સૂરજ આથમેતો,
અધૂરાં રહે જે સપન શામ ના છે.
Monday, July 23, 2012
Gazals
Hindi Gazal
(If you wish to sing sing it like Kumar Vishwas' "Koi Deewana kehta hai" or Mohd Rafi's "Khilona jaan kar ..." :):))
गली के मोड़ पे बैठा वो भूखा गुनगुनाता है,
पके जो चाँद की रोटी, लगे मीठी बताता है,
टहलने आज निकला है, पुरानी याद का मौसम,
वो गाओं से भरे बादल, शहरो पे बहाता है,
नही है मौत की परवाह, नही है जन्म पे रुकता,
फकिरो सा समय जोगी सदा बढ़ता ही जाता है,
यहाँ पे वक़्त किसको है, यहाँ सब दौड़ना चाहे,
कभी माँ-बाप का रोना, कभी बच्चा सताता है,
कहीं गोरे कहीं हिंदू कहीं हिन्दी के मेलो में,
जो छूटा एक बच्चा, नाम वो भारत बताता है,
हवा में धुन्द है, लंबा सफ़र अँधा कटे कैसे,
रूको तो राह की चिंता, चलो तो चैन आता है,
बड़े कितने बनो तुम शाह रहोगे बस खिलौने से,
वो जितना खेलना चाहे हमें उतना खिलाता है
1222 1222 1222 1222
Gujarati Gazal
જીતવુ નો'તૂ ના હારવું હતું
ફક્ત આ સ્વપ્ન કંડારવુ હતું,
હાથતાળી દઈ, આપ તો ગયા,
જે વધેલુ જીવન કારમું હતું,
તુંય તો ખ્વાબ આ દેખતી હશે,
સાવ અણધારયુ ધારવુ હતું,
બાન્ધયુ'તૂ જે અમે ડાળખાં મૂકી,
ઍક ઍ માળખુ બાળવું હતું,
સગપણો જો ઘણાં પૂર માં વહે,
બસ હવે ડૂબતું તારવું હતું
212 212 212 12
P.S. : Have been learning to write behr/chhand based Gujarati and Hindi Poetry for a while. Understood after quite some time that there is some very basic difference between the two and needs to be treated differently. Hindi Poetry relies directly on the sound of a word and also gives quite some freedom to the one who is delivering / reading the poetry to pronounce. Whereas Gujarati poetry is slightly inflexible in that sense. The unit it uses unlike Hindi Poetry is not "Phoenetic sound" but it is the letter! Which means that "hrsva" or "Dirgha" of the letter is one that decides the weight. Moreover I saw little liberty in taking words like "til" "bil" "fir" as one letter of double weight, it is seldom considered to be 2, but is always 21.
Saturday, July 14, 2012
Movie Review - Bol Bachchan
http://planetbollywood.com/displayReview.php?id=f071312023925
Entertainment coupled with a weak story, a weaker screenplay, and complete lack of common sense– Bol Bachchan has all the exact ingredients of cooking a 100 crore dish. The movie and its box office collection reflects the average film making for the average film going audience that Bollywood has currently ended up in. The story is inspired (the new term we use for copied) from legendary Golmaal (yes this time they copied the story in place of name) and fails to create the same vibe. The dialogues partly inspired by senior Bachchan movies and partly by the done-to-death inept English speaking dimwit roles that we have seen fail to make a lasting impact. Its inability to recreate Hrishikesh Mukherjee feel makes you remember and miss Hrishi-da all the more. For most of the English speaking role of Ajay Devgn, you might recall Chupke Chupke’s Dharmendra for the play on language.
Sajjid- Farhad’s dialogues need some mention here as they try to save the lack of novelty in story (Yunus Sajawal). Though the dialogues too were mostly inspired (the first one it reminded me of was Swades’ mela ram saying “apni chaukhat ka dia and giving light to neighbours place”). Cinematography (Dudley) is pretty impressive in a couple of scenes not connected to the story but during songs. Else it’s the usual Rohit Shetty film with spinning camera continuously running over trollies. Steven Bernard’s editing had a lot of scope of shortening the movie, which it did not. Background music is nothing extraordinary. Action of course is at a level that befits Rohit Shetty and Ajay Devgn’s prior works, but is unnecessary most of the times.
Tuesday, June 26, 2012
Gangs of Wasseypur - Part 1 - Movie Review
Director: Anurag Kashyap
Starring: Jaideep Ahlawat, Manoj Bajpai, Richa Chada, Piyush Mishra, Reema Sen, Nawazzudin Siddiqui, Jameel Khan, Pankaj Tripathi,
Music: Sneha Khanwalkar
Lyrics: Piyush Mishra and Varun Grover
Genre: Crime, humor
Ratings : 8.5 /10
Recommended Audience: Adults
Film Released on: 22 June 2012