Friday, August 24, 2012

पुराने जूते

एक बात थी कड़वी,
जो किसी से कही थी कभी,
याद की चम्मच में काढ़ा बन,
आज सोच का स्वाद बिगाड़ने आई है,

वो एक पल है पुराना
जो उम्र में बड़े एक दोस्त सा,
आज मिला है वापस, तो याद आ रहा है ,
कैसे बचपन में उसने मेरी कोहनी मरोड़ी थी,

हँसी में एक खनक थी तुम्हारी,
आज मेरे रूठने पे जैसे मनाने आई है,
में उसको ताकता रहूं, तो बड़ी अंजान सी लगती है,
ना जाने किसके पास रहके आई है इतने दिन,

पुरानी याद अगर लंगर होती ,
तो डाल किनारो पे बैठा रहता,
तुम पानी पे परछाई सी हो, जो किसी के खेल में,
एक पत्थर से बिखर जा रही है, ये क्या ख्वाब है?

सच नये जुतो से मिले घाव सा है,
काश पुराने टूटे ना होते

 

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