Thursday, November 8, 2012

कहानी एक लड़की की

सुबह जब आँख खोले पंखडी और रंग बिखराए
सदा हो आरती की मंदिरों में, धुंद सी छाए,
वो गौरैया कहीं तब पीपलों की छाँव में गाए,
कोई झरना पहाड़ों पे बना झालर तो बह जाए,

वो झालर जो हटाओ तो मिलेगी तुम को वो लड़की,
नहाकर कोयले से जिसने उजला रंग बनाया है,
वो लड़की जो परी होती अगर होती कहानी में,
खुदा ने पर किसी कुम्हार की बेटी बनाया है,

बहे शफ्फाक पानी पारदर्शी आवरण बन कर,
लगे सब मन बहकने बाँवरे वन के हिरन बन कर,
चहेरे पे चमक दैवी, वो काया का लचीलापन,
चले वो अप्सरा जैसे, अदाओं में सजीलापन,
सभी ये शोखियाँ उस को जवानी से मिली लेकिन,
धड़कता है अभी बचपन कहीं उसकी जवानी में,

करे आवाज़ पायल जब गली में दौड़ आती है,
कभी तुतला के बच्चों संग वो उनके गीत गाती है,
कभी बकरी चराने के बहाने खेलने भागे,
गुलेलो से फलों को फिर कभी वो तोड़ के भागे,
कभी वो हाथ में मट्टी, मेहँदी सी सजाती है,
घुमा पहिया नये फिर रूप के गमले बनाती है,
हज़ारो हसरतें सब की वो लेकर साथ चलती है,
मगर ख्वाहिश पुरानी एक उसके मन में पलती है,

कभी दादी ने राजा की कहानी एक सुनाई थी
कि जिसमें राज सारा प्यार में वो छोड़ देता है,
बनाता है महल रानी को दफना ने वो उसके बाद
बना फिर पास में अपनी कबर को जोड़ देता है,

उसे ये था भरोसा एक राजा है बना उसका,
जो उसको प्यार से रख कर महल उसके बनाएगा,
कभी तो चाँद देखेंगे वो महलों की अटारी से,
कभी रूठे तो फूलों और गहेनो से मनाएगा,

वो राधा बन रहे बैठी, हो कान्हा पास में जब भी,
बनी मीरा इसी ही सोच में, जोगन वो हो बैठी,
गुरूर भी नाज़ होता है जब होता है जवानी पे,
मगर उसकी जवानी गैर की यादों में खो बैठी
न था उसको मगर मालूम, ये भी बात होती है,
सुबह होती वहाँ पे है जहाँ पे रात होती है,

कही से घूमता प्यासा भटकता शाह एक आया
वो अपने लश्करो से हो जुदा, इस गाँव में आया,
वो उलझा जब कहाँ? क्यूँ? कौन? के पूछे सवालों से,
थी जैसे एक कहानी बन रही उसके खयालो से,
वो लड़की थी परी, देवी के मनभावन कोई सपना,
तभी थी ठान ली उस ने बनाएगा उसे अपना,

वो लड़की भी, इसी के वास्ते अब तक रुकी सी थी,
सगाई पे महल में आँख उसकी भी झुकी सी थी,

जो लड़की अब बनी रानी, बनेगी शांत, चंचल है,
जो दे सब को ख़ुशी समझो, कहानी वो मुकम्मल है,
अगर ऐसा जो होता तो, विधाता भी अधूरा है,
किसी में भी सभी को वो कभी भी खुश न रख पाया,
मुकम्मल ख्वाब की तक़दीर, कहानी थी वो लड़की की,
खुदी को रौंदती तदबीर कहानी थी वो लड़की की

जो दादी ने सुनाई थी कहानी थी वो राजा की,
हो जैसे बात रानी की वही जो थी वो राजा की,
भला ये कितने दिन रहना, लगेगा बंद महलों में,
बनी रानी बुढ़िया सी पड़ी उन बंद महलों में,

अकेला चाँद जब आता रहा सुनी अटारी पे,
बड़ा मातम सदा लाता रहा सुनी अटारी पे,
हवेली लाख बन जाए कहीं पे नाम पे उसकी,
बनेगी कब्र उसकी पर हमेशा नाम पे उसकी,

वो पायल थी बड़ी हल्की ये गहने बेड़ियों से है,
ना बकरी बाप की कोई, ये सपने भेड़ियों से है,
ये मेहन्दी हाथ की जैसे जलाती है बदन सारा,
कभी ख्वाहिश कोई झूठी जलाती है जनम सारा,

कहानी खूब राजा की भले दादी कहे हर दम,
नसीबों में वो लड़की को अकेलापन मिले हर दम,


सुना है आज राजा मर गया उस युद्ध भूमी पे,
नयी एक फौज बढ़ती है कहीं उस युद्ध भूमी से
ना रानी को गंवारा है महल में गैर आ जाए
लिए है हाथ में औज़ार उसने युद्ध भूमी के,
चला कर वो लिखेगी खूब रानी की कहानी वो,
सुनो बच्चों ना राजा की कोई अब से कहानी हो

 

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