Tuesday, January 18, 2011

હુંફાડી ઍક કોઈ ક્ષણ રહે - A poem

(Tried posting everything I missed posting from my Infosys internal blogs from last year)

વાતો પ્રેમ ની ઍવિજ રહે છે, સદી કોઈ પણ રહે,
દાનત રહે સાર વચન નો, પછી જે કોઈ પ્રણ રહે,

બે હૃદય ના વચ્ચે સંબંધો ને નામ ની નથી જરૂર,
ઍક સ્પર્શ રહે પ્રેમાળ, હુંફાડી ઍક કોઈ ક્ષણ રહે,

પ્રીત ના પતંગ મા, કાંના ની ગાંઠ ધીમે બાંધજો,
થોડી હવા થી ડગમગતી રહે, થોડા કોઈ કામણ રહે

ભોમિયાઓ માટે પણ, વિચિત્ર છે ભૂગોળ પ્રેમ નો,
આગ નો દરિયો કહે કોઈ, કોઈ વિરાન છે રણ કહે

મીરા-રાધા ભાગલા કરતાનથી,કૃષ્ણ અર્થ પ્રેમ નો,
પૂજા મામારો રહે, અને રાસલીલામાતારો પણ રહે

थोड़े और गंभीर बनो - A poem

धीर बनो तुम वीर बनो, तुम बहता कोई नीर बनो,
वक़्त है बोलो, देखो-सुनो, ऐसे ना मूक-बधिर बनो,
युद्ध भूमि में प्रबीर बनो तुम, अपनी सोच में कबीर बनो,
सीखो सब से अच्छे गुण, तुम राम के दस-दस सिर बनो,
कंटक पथ पे फूल बनो तुम, शत्रु पे बरसते तीर बनो,
अधिकांश में आम रहो तुम, अपनी बातों में माहिर बनो,
दीपक राग बनो सत्य-ताल पे, ना अज्ञान का तिमिर बनो,
वक़्त यही है, नौजवान हो, संभलो, थोड़े और गंभीर बनो

हम बुलबुले तो है, पर ये गुलशितान मेरा नही - A poem

Wrote sometime last year after the various blasts and train derailment etc.

वो जो जल रहा है कही, वो बदन मेरा नही,
वो बेवा मेरी नही, बच्चों पे कफ़न मेरा नही,
हम बुलबुले तो है, पर ये गुलशितान मेरा नही,
जो चाहा था वैसा रहा ये हिन्दुस्तान मेरा नही,

वो तो कोई तेज़ उड़ती चिड़िया थी सोने की,
उसको नादान हमने कोई गुड़िया सी होने दी,
ये गिद्ध कौन है, जो चिड़िया के अंडे खा रहे है,
गुड़िया के जिस्म को बेच बेच दौलत पा रहे है,
गर हम-वतन है ये, तो ये हम-वतन मेरा नही,
जो चाहा था वैसा रहा ये हिन्दुस्तान मेरा नही,

मातृभूमि के वीर की राह में जो फूल बीछे मुरझाए,
बारूद की एक-एक फूँक में सारे राख बन उड़ जाए,
कहीं पैसो की लालच में अब कौभान्ड बनाए जाते है,
कही लाशों पे चल राम के सारे स्वांग रचाए जाते है,
सीता को लज्जित करे वो भगवान मेरा नही,
जो चाहा था वैसा रहा ये हिन्दुस्तान मेरा नही,

जिनके खून के रंग भी बसंती रंग गये थे कभी,
जिनकी हर एक साँस में आज़ादी ही थी बसी,
उनके नाम पे राहे है पर उनका मान ठहरा नही,
हम बुलबुले तो है, पर ये गुलशितान मेरा नही,
जो चाहा था वैसा रहा ये हिन्दुस्तान मेरा नही,

Trying different types of poetry

घर घर तुझको पूजे सब,
कहकर एसु-राम,
सब में छुप कर तू कहे,
में हूँ तेरा काम

पटरी पे चलती रेल से,
सब ने पाए भाग,
जहन के माथे पे जो लगे,
धो कर ना जाए दाग

आँगन की अटखेलियाँ,
खेल जो बीते साल,
छोड़ ये आँखें होती क्यों,
मेहन्दी के संग लाल

गीत बने संसार के सारे,
जोड़ के हर एक सुर,
बूँद ना रहे संग नदी जो,
वो बह ना पाए दूर

युद्ध की अपनी भाषा है,
बम-धमाके सुन,
शहीदो को सुनाती धरती,
लॉरी की कोई धुन

आम जो पकते धूंप में,
मीठे लगे जब खाए,
समज भी हार में छुप के,
कठिनाई से आए

अपने सपनो ही के लिए - A poem

मुश्किल बहुत है यहाँ पे अपने सपनो ही के लिए जीना,
अपने लिए जीना हो या हो अपने अपनो के लिए जीना,

दोराहें है और मोड़ भी है,सफ़र मे हर कदम जहा जाओ,
मंज़िलों के लिए जीना हो, या हो कदमो के लिए जीना?

दिये लिए चलना, रोशन नही है राह सूरज से हर जगह,
आँख बँध हो तो किसी और लौ मे जलने के लिए जीना,

अकेले आए थे पर रिश्ते जो हम बनाते चले, तो अब है,
कुछ कसमो के लिए जीना तो कुछ रस्मो के लिए जीना

मुश्किल बहुत है यहाँ पे अपने सपनो ही के लिए जीना,
अपने लिए जीना हो या हो अपने अपनो के लिए जीना

ये जग के चाँद - A poem

याद है मुझे, कुछ दिन पहले की ये बात है,
मुन्ने ने ली थी ज़िद, रहना उसको साथ है,
नाइट-शिफ्ट के टाइम कहा उसे ले जाता मैं,
बात घुमा, हर बार नयी लॉरी कोई गाता मैं,
"पापा, कब जाएँगे हम रात में टहलने को",
पौने चाँद को दिखा बोला "उसे पूरा होने दो",

कल सुबह ऑफीस से जब में घर लौटा तो,
देखा सुबक़ सुबक़ कोने में बैठ था रोता वो,
"किसीने हमारी बात सुनी थी, कोई तो नया है,
हर रात चाँद को काट काट के घर वो ले गया है,
"हम टहलने ना जाएँगे, उसने हम दोनो को लूटा है,"
कैसे बताता उसको मैं, एक काम था वो भी छूटा है,
अब कोई ना नाइट शिफ्ट है, कोई पैसा ना आएगा,
अमावस के चाँद सी ही रोटी भी घटती अब खाएगा,
सुबह फिर हम दोनो चुपचाप दुखीसे सो गये यहाँ,
फिर आज रात दौड़ के आया, बदल रहा था जहाँ,
"पापा चाँद फिर आया है, काफ़ी सुख गया है लेकिन"
क्या आपको लगता है, हम टहलने जाएँगे एक दिन?
चाँद के पूरे होने की हरदम, ऐसे ना बेटा तू राहें देख,
तू ही मेरा पूरा चाँद है, किसी और चंदा की बातें फेंक,
चल आज संग चलते है, शीतल चाँदनी में हम साथ नहाएँगे,
ये जग के चाँद बढ़ घट के किसी दिन साथ हमारे हो जाएँगे

A Few couplets just like that

Tere naam ki pehchaan mere chehre se hone lage,
Mein mohabbat ki aisi wafadari se darti hu,
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Ye aaj mausam mein ek anokhi si dhanak lagti hai,
Apne dupatte ko meri aankhon pe yunhi rehne do.
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Wo Harroz meri angrezi ke talaffuz pe hasa karta tha,
aaj "miss you" bhi bada sisak sisak ke kaha hai usne
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Mutthi mein kaid kar sakta hu nazuk phoolon ko bhi, jalte suraj ko bhi,
Tu magar dhoonp sa hai, mehak sa, tujhe bandh kar ke rakhu to bhi kaha?
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Dagmagati ye naav hai, kadam zara sambhaal ke rakhna,
Waise to in maujho ka bhi ye dariya nahi hota
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Bandh aankhon mein ujala bhar dete hai,
Tumhare khwaab meri neend ke suraj se hai
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Ek awara si hokar bhatakti hai jab se gaye ho,
warna ye saas chalti thi to rukti thi tum par.

जीवन जैसे धक्का गाड़ी - A Poem

चोरस पहियों पे धक्के खाती , जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
कभी संभले कभी लड़खड़ाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,

मंदिर के और रुख़ कर चलती, फिर कोई मन अगन मचलती,
पूजा के फूल बालो में लगाकर, गानो की धुन पे मन्त्र उगलती,

रास्ता बदल के ढूँढने जाती, कोई बीकाउ कलकत्ता साड़ी,
अपनी होकर अपनो को सताती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,

रूह से अंधी, कर्म से बहरी, चह-चह कर पीछे भागती हर पल,
किसकी खातिर भूल के पैसा, भोग, खुशी सब मांगती हर पल,

थक-थक के जब रुक जाती, तो अपने पैर पे मारे कुल्हाड़ी,
सपने जला के फिर बढ़ती जाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी,

चोरस पहियों पे धक्के खाती , जीवन जैसे धक्का गाड़ी,
कभी संभले कभी लड़खड़ाती, जीवन जैसे धक्का गाड़ी

વાહ રી ઝિંદગી - A poem

ઍક આયખુ જીવતી રહી, ઍક પલ મા વીખરાઇ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી

લાગતી'તી સમંદર જેવી તોયે બે બૂન્દમા ભરાઈ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી
મળ્યા'તા જે દોસ્ત જીવન ના, બની યાદ છે ખોવાઈ ગયા,
છે હમસફર ને છે સફર, ખોબા મા થી મંઝિલોં વેરાઇ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી
કાઇ પર્વતો કર્યા છે સર, કૂચ ની ઍકલી આગેવાની કરી,
ઍક કદમ પ્રેમાળ ઍ, વધારતા તૂ આટલી ગભરાઇ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી
તૂ બની છે ભોમિયો, રસ્તા ની આંટીઘુંટી ની જાણકાર તૂ,
મૂઝ થી મૂઝ ના રસ્તા મા ક્યાંક તૂ ઍકલી ખોવાઈ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી

ઍક આયખુ જીવતી રહી, ઍક પલ મા વીખરાઇ ગઈ,
વાહ રી ઝિંદગી

Flash Fiction : The Kill

It takes a while to get used to it - the rat meat and the road side animal. Initially for the first time you might feel like vomiting, you might vomit too, but if you roast it properly after washing, its just ok after a couple of meals. Its filling and it costs nothing.

He lived on the highway; had no money, no food, no life. He was old and begging needed hardwork. He didnot beg. He did not kill even. He waited. He waited for road accidents to happen. This was not for the first time. He saw a dog lying dead on the side of the road. Half crushed by a truck. It was a massive kill. He need not worry about the day's dinner and next days lunch. He went there when there was no traffic and when people would not notice him - the typical evening time, just before the dark. He chopped the part he wanted to eat. He did. Roasted them. Ate them.

The next day he saw a dead cat lying on the other side of the road. He knew he had to go get it. The intestine looked yummy from this side of the road. He crossed his side of road and the cat looked all the more interesting from the middle of the divider. He jumped over. He did not notice the truck coming. He was hit by a truck. He fell. Died. All the dogs hiding in the places near by, were out for a long waited feast as they took the cat - trap away.

Flash Fiction : Synthesize

"You are going onstage after this, to assist him" Rehana said to me as I moved to assist him carrying the synthesizer. I was ready. The evening meant two hundred rupees.

I was having that piece of newspaper in my hand. I remembered daddy.

We went on the stage. His presence made the crowd go mad. I was following him and had recieved the delayed cheer meant for him. They stood up on their legs, waved, fell for him, girls had his name tatooed everywhere, boys were dressed like him. It was a rock-star hysteria. The man had to start with a remix, I tuned my synthesizer to sound like sehanai. The tune played, the crowd Jhoomed, the smoke flew, the day faded.

I got my 200. I kept it along with the newspaper before I went to sleep.

The lines of the 7th page top left corner news read "Another Sehnai Maestro dead in the darkness of poverty"

Dad was amused I remember at the synthesizer "Ab to Sehnai bajane ke lie sehnai ki jaroorat nahi hoti."

Flash Fiction : Pleasure Play

I went out on the balcony. It was dark there. Closed the curtains behind me, so that mom doesnot notice me watching her.

There I see her! I cant see him in full, but I can see him in the shadows.

I think she is a devout Hindu, she would be burnt on her death. She is a fatal beauty. He is a casanova, a reflection of the biggest desires of life. When the need be, he would break codes of any religion. She likes him. He is obsessed with her smell. They come closer, I hope my mom doesn't disturb me in between this. He wraps her with himself. She resists a little but then squeezes herself to him. He would consume her, she would burn with his desire. For a moment they will engage and then disengage, the most beautiful love making for my mind. I see her, I cant see him. She seems to be going through this silently. He makes little noise in the process.

My mom, opens the curtain. I have to stop and throw her from the balcony as I clean him. My cigarette goes down on the road half burnt and my lips, he is left alone panting smoke and trying to hide the desires.

A Small Tribute to Great Nida Fazli

(Catching up on old posts that I could not post earlier)

I was listening to this gazal in the morning. It is sung by Chandan Daas "Apna Gam leke kahin aur na jaya jaye, ghar mein bikhri hui chizon ko sajaya jaye" and written by Nida Fazli. A poet whose words have impacted even my thoughts for long. I am his ardent fan. It takes a great perspective for life and painful experiences to pain down things that he did. He has written some of the best lines ever in Hindi-Urdu combination. I dont want to make this blog a collection of his poems, but still would like to quote a few things.

Nida Fazli shifted to India after Independence and his parents were staying in Pakistan. When they died he could not even go for their funeral. He could not go to their grave later and pray. So he used to go to any random grave in India and pray for them. On his dad's death, he had write na poem called "Vaalid ki maut par" and anyone who has read that will agree that its a master piece. I found the one in english words on net. Copying here.

तुम्हारी कब्र पर मैं

तुम्हारी कब्र पर मैं
फ़ातेहा पढ़ने नही आया,

मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर
जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे?
कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था ।

मेरी आँखे
तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ
वो, वही है
जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।

कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं,
मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं,
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |

बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहता है,
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है,
मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |

तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है,
वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है,
तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो,
कभी फुरसत मिले तो फातहा पढनें चले आना |

Many of us know about the song he wrote for mother, which was sung by Pankaj Udhas "Resham ki Sondhi Roti pe, khatti chatni jaisi maa", but the beauty of the song lied in two stanzas for me :

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ

If ever there were a heart warming tribute to parents, it had been these for me. That angst of missing home and place that can be called his own can also be read in the lines :

तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

There are lines in many of his Gazals that uses time so poetically that you are surprised by the deep metaphors. Two sample two that I am remembering right away, in a song by Jagjit/Lataji/Ashaji, Nida Fazli write a line

"Ham koi waqt nahi hai humdum, Jab bulaogi chale aayenge"

and in another Gazal he has written a line which reads like
"Waqt Rutha raha, bachhe ki tarah, raah mein koi khilona na mila"

And the temporary nature of life could be heard in

"Ek musafir ke Safar jaisi hai, sab ki duniya,
Koi jaldi to koi der se hai jaane wala "

Nida Fazli has gone through this and heartbreaks and many more things in life that gives this poet a depth like no one else. You need to see a lot of life before coming up with words like :

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है

or something as deep as

"Kabhi kisi ko mukammal jahan nahi milta ,
Kahin zameen to kahin aasmaan nahi milta,
Jise bhi dekhiye wo apne aap mein gum hai,
Jabaan mili hai magar ham zabaan nahi milta" (its beautifully sung by bhupinder)

And he would also write songs like "Tere mere naam naye hai, Dard purana hai, jeevan kya hai tez hava mein deep jalana hai"

And many of you would have heard this old title song of a tv serial called "Sailaab". This is one gazal that I relate to the most now :)

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

another one we can relate to is : )

कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है

And also the lines famously rendered by chandan daas (gazal : apna gam leke kahin aur na jaya jaye)

"जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

Such advises makes a great read when given as simply as :

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

There is a lot that he has written about the peace that should prevail between hindu and muslim but my favourite line of all of it are in this doha :

सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत

And

चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

and one more that I pariticularly like is the one which is a part of the album "Dil kahin hosh kahin" and sung by Udit Narayan. It talks about Pakistan and India and how America is becoming an unwelcomed third party in it.

"Kya tera hai kya mera hai, ye ishq diwana kya jane,
Dil mandir bhi hai masjid bhi, bedard zamana kya jane,

Ye kaun hai jo tere mere rishton ko mitane aaya hai,
Mere tere ghar aangan mein deewar uthane aaya hai,
Dharti ka ye kaafir batwara imaan ki izzat kya jaane"

He has also written romantic gazals like "Hoshwalon ko khabar kya" and "chand se phool se ya meri zubaan se suniye". But the depth of contemplation is not as great in those. He was rather more impressed by the love of Meera for Krishna. And that kind of love of his can be heard in the lines :

पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

and also in

फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला

Infact the other two stanzas of the latter is very much impressive in terms of the composition

गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला

दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला

These and htere are many other poems of his that I am remembering right now, but I would like to leave you guys with 2 small poems written by him.

First one is about a woman trying to identify people who burnt his house and family in a riot :

नहीं यह भी नहीं

यह भी नहीं

यह भी नहीं, वोह तो

न जाने कौन थे

यह सब के सब तो मेरे जैसे हैं

सभी की धड़कनों में नन्हे नन्हे चांद रोशन हैं

सभी मेरी तरह वक़्त की भट्टी के ईंधन हैं

जिन्होंने मेरी कुटिया में अंधेरी रात में घुस कर

मेरी आंखों के आगे

मेरे बच्चों को जलाया था

वोह तो कोई और थे

वोह चेहरे तो कहाँ अब ज़ेहन में महफूज़ जज साहब

मगर हाँ

पास हो तो सूँघ कर पहचान सकती हूँ

वो उस जंगल से आये थे

जहाँ की औरतों की गोद में

बच्चे नहीं हँसते

And another one is about a courtesan - a tawaiaf :

यह तवाइफ़
कई मर्दों को पहचानती है
शायद इसीलिए
दुनिया को ज़्यादा जानती है

-उसके कमरे में
हर मज़हब के भगवान की
एक-एक तस्वीर लटकी है
ये तस्वीरें
लीडरों की तक़रीरों की तरह नुमाइशी नहीं

उसका दरवाजा
रात गए तक
हिन्दू
मुस्लिम
सिख
इसाई
हर ज़ात के आदमी के लिए खुला रहता है।

ख़ुदा जाने
उसके कमरे की-सी कुशादगी
मस्ज़िद
और
मन्दिर के आँगनों में कब पैदा होगी!

Kushadgi = Vishaalta




(Hope you enjoyed reading through this)

Wednesday, January 12, 2011

શ્રદ્ધા નુ કારણ તૂ

તારી વાત મા કેટલા ખુદા યાદ આવ્યા મને,

તૂ ઍક કાફિર ની શ્રદ્ધા નુ કારણ બની ગયી

કોને કહુ ક ક્યા ક્યા તારો અણસાર જડ્યો મને,

મૃગજળ ના નશા મા ક્યારેક તૂ રણ બની ગયી

ઉંમર ઉમેરી ગુણી ભાગ્ય ના સરવાળા થી થયો,

બાદબાકી બાદ બાકી જીવન નુ તારણ બની ગયી

ક્યારેક પીઢ પ્રૌઢ, તો ક્યારેક તૂ માસૂમ તરવરાટ,

ક્યારેક બની તૂ શિકારી, ક્યારેક તૂ મારણ બની ગયી

આખરે બીડતી આંખોને બસ તારી ક્મી નો મલાલ હતો,

જીવન ની બધી સફળતા, ત્યારે સાધારણ બની ગયી

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