सोचता हू ,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी ही तकदीर नक्श हो,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी तस्वीर भी अक्स हो,
क्या लिखू, के सियासतदार भूल जाए जंग कीबातें ,
क्या लिखू के फिर ख्वाबिदा नौजवान कल के गीत गाते,
क्या लिखू के गोलिया स्कूल के कानो में ना चीखे,
क्या लिखू के डोलिया दहेज की कहानियाँ ना लिखे,
क्या लिखू के भूखो की बस्ती में रोज़ पकवान बन जाए,
क्या लिखू के सूखे खेत में मरनेवाला ना कोई शक्स हो,
सोचता हू ,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी ही तकदीर नक्श हो,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी तस्वीर भी अक्स हो,
क्या लिखू जो रोक पाए बढ़ता काला धुआ चमन की ओर,
क्या लिखू जोउलज़े नौजवान उठ ले थामे वतन की डोर,
क्या लिखू के बच्चों को खेल के इस भीड़ से मैदान मिल जाए ,
क्या लिखू के बुड्ढे झुकते पेड़ थोड़े से सहारे से खिल जाए,
होसला दे जो सफ़र में थके काफ़िर मुसाफिर को इबादत का,
क्या लिखू के प्यार-दोस्ती-अमन ही यहा सबका लक्ष हो,
सोचता हू ,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी ही तकदीर नक्श हो,
क्या लिखू, के दुनिया की एक नयी तस्वीर भी अक्स हो,
सोचता हू,
लिखू तू क्या लिखू, ये या वो, कुछ समज में नही आ रहा,
सोचता हू,
लिखू तो क्या लिखू, लिखने से कुछ बदल भी नही पा रहा
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