सूखे खेत की चारपाई से, नंगा आसमान तकता हू,
नीले कफ़न की चादर ओढ़े, बारिश का कंकाल ये
बादलज़मींदारो के क़र्ज़ में डूबे बीवी के गहने बच्चों का खाना,
बिन बरसे हर कतरेका मोल , जी का है जंजाल ये बादल
पिछले बरस आया था ऐसे, कुछ खुशिओ के दाम चुकाने,
हवा के झोकें से बिखरा था, बिन बारिश कंगाल ये बादल
शाम की रोटी, मुन्ने की फीस, बीवी का गहना, तेरा सपना ये ही है,
बस ये ही है, तू आँखों में आश में संभाल ये बादल
पहचान से मेरी पिछले बरस कुछ नेता माँगने आए थे,
उनके लिए सत्ता ही सब, कभी महाराष्ट्र कभी बंगाल ये बादल
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