जो है मज़ा मझधार का, वो ना किनारो पर मिले,
जो मंज़िलें हो नाव की ना वो लहर बन कर मिले,
एक चोट पर हो घाव तो एक चोट पर मरहम मिले,
हम कल मिलेंगे जीत से जो आज सौ ठोकर मिले,
होगी कोई मजबूरियाँ, जो कह ना पाई तुम मुझे,
बेबाक सा वो इश्क़ भी तो कर ना पाई तुम मुझे,
कब तक कहूँगा प्यार के में झूठ अपनेआप से,
जब याद में चुभते हुए सब बेवफा खंजर मिले,
आँखें भरी हो दर्द से, हो भूख का लावा जवान,
जब रोशनी जाती रहे, दुश्मन लगे सारा जहाँ,
तब होसला बनकर कभी वो साथ में आ जाएगा ,
थे ढूँढते उसको बूत्तों में वो मगर अंदर मिले,
हो एक साया एस ज़मीन पर जो मेरा रहबर रहे,
चाहे वो हो बेज़ार सा या बादशाह अकबर मिले,
सागर रहे, गागर रहे, या बूँद भर हो ओस में,
अब जो मिले वो ठीक है, हो नूर या पत्थर मिले
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