कहीं चलती कहीं रुकती, बताओ आग कैसी है,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है,
जलाके रूप ना बदले वो अंजन हो नहीं सकती,
जलाए जो नही सोना वो कंचन हो नहीं सकती,
अगन जब भी लगे तब वो कोई बदलाव लाती है,
ना लिपटे रूह से ज्वाला तो बंधन हो नहीं सकती
करे जो राम सा शासन, वो रावण नहीं मिलता,
बड़े भाषण तो मिलते है मगर राशन नहीं मिलता,
हमारे देश के नेता, सभी है भूख के मारे,
कभी चारा कभी दाना, कभी सावन नहीं मिलता
कभी था कृष्ण की भूमी, खुदा के नूर सा भारत,
हैधर्मो से, या जनपथ पे, लो जगड़ो में फसा भारत,
कभी सारे जवान बेटे कहे, पैंसठ की बुढ़िया है,
अकेले गाँव में रोता , अधूरी आस सा भारत,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है
Monday, August 13, 2012
Poem - अधूरी आस सा भारत
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