Saturday, January 2, 2010

Poem : बहते खून का बहाव

(Pre-Script: I am not fan of Nathuram Godse, and I love ideas and life of Mahatma Gandhi. This is an effort to understand the fictitious thoughts of the villain, I still cant understand).

Nathuram Godse happens to be one of the most controversial figures that lived in 1948 till date. He killed the one who believed in non-violence.

Lets read the irony completely. He killed the one whose Idea of belief in forgiveness and non violence ruled the country and he was hanged for it!

I was reading Nathuram Godse's last speech, in the court. He did not plead for mercy. He did not run away or shoot himself when he killed Mahatma. He wanted to give his reasoning in the court before dieing. And he did.

Well I agree that his reasoning was as flawed as his act that it led to.


जज साहब, वो कहता था,
बदलाव अगर देखना चाहते हो तो, खुद ही तुम बदलाव बनो,
जलाओ ज्योत राष्ट्रभाव की, अपने बहते खून का बहाव बनो,
जज साहब,
में भी एक बदलाव हू,
में भी सुलगती एक सोच का बहाव हू,
वो सोच के जिसकी मशाल पे उसने अग्नि दाह दिया,
में उसी मशाल मे जलता उसका ही उल्टा दाव हू

धर्म निरपेक्ष रहे हम, अमन रहे गली-मोहल्लें में,
चाहे बीवी की लाश दिखे, और बहेन लूटे कलकत्ते में,
आज़ादी चाही थी जो उसएक आज़ादी के सौ टुकड़े मिले,
मेरी कॉम के खून से लाल हुए, जो सफेद थे फूल खिले,
तब मेरी पीठ पे हाथ रख बापू बोला,
"क्षमा ही सच्चा शौर्य है",
क्या क्षम्य था वो सब जो उन्होने किया? नही,
मेरा वार उसकी अविजय ग़लतीओ का जवाब था,
जज साहब,
प्रतिउत्तर पाप नही होता,


सदीओ बाद भी आज़ादी का जब इतिहास पढ़ाया जाएगा,
वो पिता, और में पिता का हत्यारा ये सबको बताया जाएगा,
पर मुजको उससे कोई आर नही है, उसकी सारी बातों से है,
मेरे लिए आज भी ज़ालिम का इंसाफ़, ज़ालिम पे ज़ुल्म से है,
हज़ारो चाहे अलग ही समझे, मुझको गर्व है कोई सोग नही,
अपने देश की बर्बादी देख धरे रहने का मुझको कोई रोग नही,
जज्साहब,
मुझपे आप कोई रहम ना करना, फाँसी मेरा अंजाम रहे,
गाँधी जापका दंभ दिखलाते, मेरी मौत से खुशहाल रहे,
वो एक बाप था, जो भटक गया था,
में बेटा अपनी माँ का हू,
हे, भारत माँ,
तेरी लाज बचा ना पाया,पर
जो बचा पाता, और जिसने बचाई नही,
उस बापू का में हत्यारा हू

(I hope we are mature enough not to feel offended by a poem that tries to understand the psyche of an offender.)

(Inspired by Nathuram Godse's speech and KK Menon's performance in "Shaurya" :):) )

No comments:

AddMe - Search Engine Optimization