एक बात थी कड़वी,
जो किसी से कही थी कभी,
याद की चम्मच में काढ़ा बन,
आज सोच का स्वाद बिगाड़ने आई है,
वो एक पल है पुराना
जो उम्र में बड़े एक दोस्त सा,
आज मिला है वापस, तो याद आ रहा है ,
कैसे बचपन में उसने मेरी कोहनी मरोड़ी थी,
हँसी में एक खनक थी तुम्हारी,
आज मेरे रूठने पे जैसे मनाने आई है,
में उसको ताकता रहूं, तो बड़ी अंजान सी लगती है,
ना जाने किसके पास रहके आई है इतने दिन,
पुरानी याद अगर लंगर होती ,
तो डाल किनारो पे बैठा रहता,
तुम पानी पे परछाई सी हो, जो किसी के खेल में,
एक पत्थर से बिखर जा रही है, ये क्या ख्वाब है?
सच नये जुतो से मिले घाव सा है,
काश पुराने टूटे ना होते
Friday, August 24, 2012
पुराने जूते
Saturday, August 18, 2012
Ek Tha Tiger - Movie Review
Friday, August 17, 2012
जो है मज़ा मझधार का - A song
जो है मज़ा मझधार का, वो ना किनारो पर मिले,
जो मंज़िलें हो नाव की ना वो लहर बन कर मिले,
एक चोट पर हो घाव तो एक चोट पर मरहम मिले,
हम कल मिलेंगे जीत से जो आज सौ ठोकर मिले,
होगी कोई मजबूरियाँ, जो कह ना पाई तुम मुझे,
बेबाक सा वो इश्क़ भी तो कर ना पाई तुम मुझे,
कब तक कहूँगा प्यार के में झूठ अपनेआप से,
जब याद में चुभते हुए सब बेवफा खंजर मिले,
आँखें भरी हो दर्द से, हो भूख का लावा जवान,
जब रोशनी जाती रहे, दुश्मन लगे सारा जहाँ,
तब होसला बनकर कभी वो साथ में आ जाएगा ,
थे ढूँढते उसको बूत्तों में वो मगर अंदर मिले,
हो एक साया एस ज़मीन पर जो मेरा रहबर रहे,
चाहे वो हो बेज़ार सा या बादशाह अकबर मिले,
सागर रहे, गागर रहे, या बूँद भर हो ओस में,
अब जो मिले वो ठीक है, हो नूर या पत्थर मिले
Monday, August 13, 2012
Poem - अधूरी आस सा भारत
कहीं चलती कहीं रुकती, बताओ आग कैसी है,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है,
जलाके रूप ना बदले वो अंजन हो नहीं सकती,
जलाए जो नही सोना वो कंचन हो नहीं सकती,
अगन जब भी लगे तब वो कोई बदलाव लाती है,
ना लिपटे रूह से ज्वाला तो बंधन हो नहीं सकती
करे जो राम सा शासन, वो रावण नहीं मिलता,
बड़े भाषण तो मिलते है मगर राशन नहीं मिलता,
हमारे देश के नेता, सभी है भूख के मारे,
कभी चारा कभी दाना, कभी सावन नहीं मिलता
कभी था कृष्ण की भूमी, खुदा के नूर सा भारत,
हैधर्मो से, या जनपथ पे, लो जगड़ो में फसा भारत,
कभी सारे जवान बेटे कहे, पैंसठ की बुढ़िया है,
अकेले गाँव में रोता , अधूरी आस सा भारत,
बुझा दो हर वो दीपक जो अकेला रोशनी चाहे,
लगे ना जो सभी में वो बताओ आग कैसी है
Wednesday, August 8, 2012
Gangs Of Wasseypur -2 : Movie Review
The first part of Gangs of Wasseypur had left the audience wanting for more and the expectation with GOW 2 are therefore sky high. Does the film live up to the expectations? Even before we answer that let us make a point first : this movie reinvents the genre of revenge themes and redefines the use of violence and dark humour in narrative. It is surely one of the most well researched movie which tries to capture every possible detail of the characters it portrays.
The style of narrative is strongly influenced by world movies, film noir and pulp fiction. Unlike the sentimentality of movies that we like to fall for, the movie treads the thought process and theme of the story. Action is the prime mover. The blood and gore in the movie might remind you of Tarantino and it’s unique because there is no precedence to such violence in Hindi films. Yet it is strongly rooted with the impact of Bollywood on the common man. References to eras and times of Khan’s, Qureshi’s and Singh’s are done through Bollywood movies. Yashpal Sharma’s character with his songs like “Teri Meherbaniya” , “Yaad Teri Ayegi” and “My name is Lakhan” is an exceptional point in case. Dark humour apart from this song is everywhere as well – do check out some of the chase sequences in a crowded town as well as goof ups during the gang wars.
One of the strongest and omnipresent character for the part 2 of GOW has been the music. The movie for the first half deals extensively with percussions. The drums, the dhols, the daflis – all keeps you hooked to the movement of the story. The occasional flavour of folk songs and the experimental songs with lyrics like “Frustiyao na moora, Nervasao na Moora” being used absolutely intelligently adds to the flavour. Sneha Khanwilkar, you are the chosen one!
Sunday, August 5, 2012
Gazal by Jaykumar Shah
ઘણા છે મિત્રો પણ બધા નામના છે,
ન સમજાય ઍવી જગત ની કથા છે,
અગન જાનકી ની, ભજન રામ ના છે,
દુનિયા નકામી દુખો માં બળે છે,
સુખો તો બધા તોય પરધામ ના છે,
ન સ્વતંત્ર માણસ, ન આઝાદ ઈચ્છા,
જો યુધ્ધે ચડેલાં, ધરમ-કામના છે,
હૃદય લાગણી થી સભર રાખવાને,
આ મારા બધા તો દુખો ગામ ના છે,
મફત માં મળી જાય મૌલિક વિચારો,
નકલ ચોર અહ્યા વધુ દામ ના છે,
બધી ભૂખ ની ઍ પરાકાષટા છે,
ઘરે પેટ ખાલી, પિતા જામ ના છે,
હવે કોઈ સામે ન માથું નામવું,
બધા દેવતા હાડ ના ચામ ના છે,
ખુદા તો કહે ત્યાગ કર કામના ને,
સભા માં મજાની તોયે નામના છે,
બપોરે સળગતા સૂરજ આથમેતો,
અધૂરાં રહે જે સપન શામ ના છે.