Sunday, September 28, 2014

मैं तब त्योहार मनऊंगा

मैं तब त्योहार मनऊंगा
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तिरंगी पताका ले ले कर,
उमड़ी है सड़कों पे टोलियाँ,
याद लता की आवाज़ों में,
कर ली सरहद की गोलियाँ,
त्योहारों की बैसाखी सब,
हम जब लेना यूँ छोड़ेंगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा

(जन्माष्टमी)
चाई की कीटली, बूट-पोलिश को,
रोज़ किताब सा बाँचते है,
दो रोटी, एक पांव की खातिर,
सिग्नल पे नंगा नाचते है,
कान्हा की मटकी का माखन,
जब बच्चें ये बाँट के खाएँगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा
(दीवाली)
नोच नोच खाते है बदन फिर,
नोट नोट बिकवातें है,
घूँघट की धार पे पंख काट,
चूल्हों पे उसे सीकवातें है,
माँ सीता को अंगारों पर,
जब राम नहीं चलवाएँगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा
(शिवरात्रि)
जो सड़कों पे बहता है लहू,
ना मैने बहाया ना मेरा है,
अब इंसान बचा जो सब में,
मूक, अँधा और बहरा है,
विष से भरा शिव का प्याला जब,
हम घूँट घूँट पी जाएँगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा
(ईद)
चलता है ऐसा ही यहाँ पर,
जुगाड़ लगा और रिश्वत दे,
बेटा, मेहनत की बात ना कर,
आगे बढ़ते सब किस्मत से,
ईदी में अपने बच्चों को जब,
सच की सेवई खिलायेंगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा
(क्रिस्मस)
मंदिर मस्जिद चर्च बना कर,
बेजान प्रतिति पूजते हैं,
कन्दिल की रोशन परिधि पे,
भाई हाथों से छूटते है,
पाएँगे प्यार पड़ोसी का,
जब प्यार उन्हें कर पाएँगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा
त्योहारों की बैसाखी सब,
हम जब लेना यूँ छोड़ेंगे,
मैं तब त्योहार मनऊंगा

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