सागर का पानी गहरा है,
माता की चीख़पे पहरा है,
विश्वास है डगमग सेना का,
डर सब में सहमा सहमा सा,
कब पाप मान से ठहरा है?
राम बैठ सब देख रहे है,
श्रद्धा की सांस अंदर लेकर,
वो नाम लिखें पत्थर लेकर ,
आगे सेना ये बढ़ती है
ये जान राम मुस्काते रहे,
छिलका, तिनका, कंकर लेकर,
हर एक गिलहरी आएगी,
अब दौर दमन का बीता है,
कमज़ोर ज़हर ना पीता है,
सब पार्थ शस्त्र उठाएँगे,
जब मोहनदास सिखलाएँगे,
जो मूक क्रांति की गीताहै,
बाण चयन के तत्पर है,
सिंघासन अब कुछ पल के है,
पंजे-सायकल सब कल के है,
अरविंद अरविंद से उलझेगा,
अब आम ख़ास हो जाएगा,
मुद्दे अब बिजली नल के है,
आज़ादी अब दुल्हन है